अमेठी 02/08/2017(अशोकश्रीवास्तव) @www.rubaruews.com - बीतें एक हफ्ते से उत्तर प्रदेश में चल रहे नाटकीय घटना क्रम पर समायोजित शिक्षको के संगठन व मुख्यमंत्री से वार्ता के बाद फ़िलहाल मामले में लीपापोती हो गयी है । सरकार ने अपनी राजनैतिक समझबूझ के बल पर एक बड़ी भीड़ को शांत करने का सफल प्रयास किया है.
फ़िलहाल मामले में अभी तक ये साफ़ नहीं हो सका है कि आखिर प्रदेश सरकार इन्हें स्कूल में किस पद पर भेजना चाहती है क्योंकि समायोजन रद्द होने के पश्चात सहायक अध्यापक के पद पर इन्हें रखना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना है और न्यायालय के आदेश के बाद सरकार इन अवैध समायोजित शिक्षकों को पुनः शिक्षामित्र पद पर वापस नहीं कर सकती क्योंकि पूर्ववर्ती सरकार ने 19वे संशोधन के नियम 14 (6)(क) के द्वारा दूरस्थ बी0टी0सी0 पास करने के उपरांत इन्हें सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति दी थी जिससे इनका पुराना पद ( शिक्षामित्र ) स्वतः समाप्त हो गया था ।ऐसे में सरकार यदि इन्हें पुनः शिक्षामित्र के पद पर भेजती है तो पहले नया पद सृजित करे और नई भर्ती निकाल कर पुनः नियुक्ति दे लेकिन ये काम भी उतना आसान नही होगा क्योंकि नई भर्ती में नये आवेदन कर्ता भी होंगे और उसमे केवल पुराने लोगों की भर्ती की जाय तो वह न्याय संगत न होगा और मामला फ़िर अदालत की शरण में होगा और यदि इनके लिए शिक्षामित्र का नया पद सृजित करती ही है तो उसके लिए सरकार को गाँव के सभी युवा बेरोजगारों को अवसर देना होगा , अन्यथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा और भर्ती निरस्त होगी ।।
शिक्षको के समक्ष अब सुबह 8 बजे विद्यालयों के रजिस्टर पर उनकी उपस्थिति या तो सर्वोच्च अदालत के फैसले का उल्लंघन का सबब बनेगी या प्रदेश सरकार को पुनः अदालत के दरवाजे पर खड़ा कर देगी ।
सरकार को चाहिए कि पहले विद्यालयों में इनकी उपस्थिति का कारण और इनका पद सुनिश्चित करे उसके बाद इन्हें स्कूल भेजे अन्यथा प्रदेश सरकार बड़ी मुसीबत में फ़सने वाली है ।
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