भोपाल 28/12/2018 (R.S.Rai) @www.rubarunews.com>> प्रदेश में लागू सूचना के अधिकार (आरटीआई) अफसरों की मर्जी की वजह से प्रभावी नहीं हो पा रहा है। अफसर अपने विभागों में सूचना के अधिकार एक्टिविस्टों द्वारा किए जाने वाले तमाम प्रयासों के बाद भी संबधित जानकारी पाने में असफल हो रहे हैं। इसकी वजह है लोक सूचना अधिकारिों द्वारा जानकारी न देने के लिए बताए जाने वाले कई तरह के बहाने बनाकर आवेदक को बैरंग लौटा देना। यह हाल तब है जबकि सूचना आयोग द्वारा प्रदेश के 433 अफसरों पर जानकारी न देने की वजह से जुमा्र्रना लगाया जा चुका है। खास बात यह है कि जुर्माना लगाने के बाद भी इन अफसरों ने जानकारी देने की जगह जुर्माना देना उचित समझा है। इन अफसरों से आयोग ने दो करोड़ 17 लाख रुपए कार जुर्माना वसूला है। अफसरों की मनमानी के चलते ही वर्तमान में मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग में विभिन्न विभागों से संबंधित 9895 अपीलें लंबित हैं। प्रदेश में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी न देने वाले अधिकारियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अधिकारी कभी फाइल गुमने का तो कभी दस्तावेज गुमने का बहाना बनाते हैं। उन्हें इस बात का भी खौफ भी नहीं रहता है कि सूचना आयुक्त कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर न केवल जुर्माना लगा सकते हैं, बल्कि उन्हें अपीलार्थी को परेशान करने की सजा भी मिल सकती है। सूचना आयोग के अवर सचिव पराग करकरे ने बताया कि सूचना न देने वाले विभागों में अव्वल नंबर पर पंचायत विभाग है। इसके बाद नगरीय एवं विकास विभाग आता है।
किसी ने फाइल गुमने की बात कही तो किसी ने जुर्माना भरा
1. आवेदक जितेंद्र कुमार गोथरवास ने आरटीओ से जानकारी मांगी थी कि हाईकोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन के संबंध में आवेदन दिया था, उसके संबंध में क्या कार्रवाई की गई। इस मामले में लोक सूचना अधिकारी ने प्रतिनिधि के रूप में लेखा अधिकारी गुणवंत सेवतकर को भेजा। उन्होंने आयोग को बताया कि दस्तावेज की फाइल गुम गई है।
148 अफसरों ने भरा हर्जाना
सूचना आयोग ने जानकारी न देने वाले अधिकारियों से जुर्माना ही नहीं वसूला। उन्हें दंड के स्वरूप आवेदकों को हर्जाना भी देना पड़ा। ऐसे 148 अधिकारियों को आवेदक को हर्जाना भी देना पड़ा। सूचना आयोग के निर्देश पर अधिकारियों ने 4 लाख 28 हजार 196 रुपए हर्जाना भी दिया।
2. सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आरटीआई कार्यकर्ता डीएस बारापतारे ने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी डॉ. चंदर सोनाने से चार बिंदुओं पर जानकारी मांगी थी। उन्होंने निर्धारित समय सीमा में जानकारी नहीं दी। मुख्य सूचना आयुक्त केडी खान के पास मामला पहुंचा तो उन्होंने 25 हजार का जुर्माना लगाया।
हर माह आते है फाइल गुमने के 15 केस
आयोग में हर माह तकरीबन 250 प्रकरण पहुंचते हैं। इसमें 15 ऐसे होते है जिसमें अधिकारी सूचना से संबंधित दस्तावेज गुम जाने, फाइल न मिलने और फाइल चोरी हो जाने का बहाना बनाते हैं। सूचना आयुक्त ने बहाना बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच और फाइल गुमने की एफआईआर दर्ज कराने के निर्देश तक दिए।
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